Inspirational Crime And Suspense Story in Hindi


 प्रस्तावना



 "बचपन" एक ऐसा पर्व जिसे हर कोई अपनी जिंदगी मे जीता है. "बचपन" एक ऐसा पर्व जिसमे हर किसी के भविष्य की निव रखी जाती है. इसलिये हमारे घर के बच्चों के बचपन का खयाल रखने की प्रमुख जिम्मेदारी उनके माता पिता की होती है. बचपन मे बच्चों के आसपास घटित होने वाली हर घटना का प्रत्यक्षरूप से असर बच्चों के जिंदगी पर पडता रहता है. अगर अच्छी घटनाए घटित हो तो उसका अच्छा असर और अगर बुरी घटनाए घटित हो तो उसका बुरा असर बच्चों के जिंदगी पर पडता दिखाई देता है. इसलिये अपने बच्चों के आसपास घटित हो रही घटना ओंकी जानकारी रखना हर माता पिता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बन जाती है… साथ ही अपने बच्चों को अच्छे माहोल मे रखने की जिम्मेदारी भी उनके माता पिता की हो जाती है.


 बच्चों का अच्छा भविष्य निर्मित करने मे सबसे बडी भुमिका बच्चों को उनके माता पिता के द्वारा दिये गये संस्कारों की होती है और अगर इस काम मे माता पिता से चूक हो जाये तो उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है. मैने अपने इस किताब से यही बात समझाने का प्रयास किया है. हम बहोत बार अपने बच्चों की गलतियों को छोटा समझकर नजर अंदाज कर देते है या फिर कही बार बच्चों के दिल की बात समझने मे असमर्थ रहते है….पर अक्सर यही छोटी गलतिया भविष्य मे बडा स्वरूप लेकर हमारे बच्चों की जिंदगी को उजाड कर रख देती है. इसलिये बच्चों के हर छोटी गलती को समझकर गंभीरता से लेते हुए उसका प्रेम से निदान करने की कोशिश हर माता पिता को करनी चाहिये.


 इन्ही सारे महत्वपूर्ण बातों को मध्य नजर रखते हुए एक उदाहरण की तौर पर इस किताब को लिखा गया है  मेरे आसपास घटित हो रही सत्य घटना ओंसे प्रेरित होकर मैने यह किताब लिखी है. आपके इस किताब को पढने के बाद आप भी इस बात को महसूस करोगे के आप के आसपास के समाज मे भी इस किताब की तरह की घटनाए घटित होती है. आशा करता हू के आप सब को यह 'किताब पसंद आयेगी.


         



     

 बचपन - एक गुनाह की दस्तक



 सुबह के तकरीबन 9 बजे का वक्त. लोगों का हर दिन कि तरह घर के बाहर आना जाना शुरु. कोई काम के लिये जा रहा है... कोई काम ढुंढने जा रहा है...कोई अपने बच्चों को स्कुल छोडने जा रहा है... तो कोई सब्जी लाने जा रहा ह….


 इसी बीच "श्री निवास अपार्टमेंट" मे रहनेवाले संतोष सावंत काम को जाने के लिये निकलते है. संतोष सावंत पेशे से पुलिस हवालदार है. पार्किंग मे से अपनी टू व्हिलर निकालकर अपार्टमेंट के गेट के पास आकर हर दिन कि तरह रुके और वॉचमन से बात करने लगे. वॉचमन का नाम दिवाकर है. पेशे से पुलिस होने के वजह से अपने जागरूकता का परिचय देते हुए हवालदार सावंत वॉचमन से बोलते है,

 'दिवाकर... किसी भी अंजान व्यक्ती को अपार्टमेंट मे घुसने मत देना. अपार्टमेंट मे 105 लोग रहते है और सबके सुरक्षा कि जिम्मेदारी तुम्हारी है... समझे'


 हर बार कि तरह सावंत हवालदार कि बातों को सम्मान देते हुए वॉचमन बोलता है,

 'सावंत जी.... आप फिकर मत करो... हर दिन कि तरह ही मै चौकस और सतर्क रहुंगा... जैसे आप पुलिस लोग रहते हो'


 वॉचमन कि यह बात सुनकर हलके से हँसते हुए हवालदार सावंत वॉचमन से बोलते है,

 'आखिर तुम भी तो आधे पुलिस्वाले ही हो'


 दोनों कि इसी बातचीत के दौरान अचानक से एक १६ साल का लडका उनके अपार्टमेंट से नीचे गिरता है. आजूबाजू के लोग भागते हुए उस लडके के पास आते है. सावंत हवालदार और वॉचमन भी उस लडके के पास भागते हुए जाते है. सावंत हवालदार सभी लोगों को उस लडके से दूर करते हुए उस लडके के पास जाते है और देखते है कि लडके कि साँस चल रही है या नहीं. पर दुर्भाग्यवश से उस लडके कि मौत हो चुकी होती है. एक ही अपार्टमेंट मे रहने कि वजह से हवालदार सावंत उस लडके को पहचान लेते है. लडके का नाम रोहन परब था. जो उसी अपार्टमेंट के दुसरे फ्लोअर मे रहने वाले विशाल परब और सारिका परब जी का एकलौता बेटा था.

 अचानक इस घटना के घटित हो जाने से सारे लोगों मे घबराहट मच जाती है. लोग आपस मे तरह तरह कि बाते करने लगते है. हवालदार सावंत भी कुछ समझ नहीं पाते. ऐसे मे हवालदार सावंत सभी लोगों को रोहन के बॉडी से दूर रहने कि हिदायत देते हुए अपने पुलिस स्टेशन फोन करके अपनी टीम को बुला लेते है और तेजी से भागते हुए अपार्टमेंट के टेरेस कि ओर जाते है जहाँ से रोहन नीचे गिरा था. टेरेस का दरवाजा पहले ही खुला था. हवालदार सावंत टेरेस पर आते ही उस ओर देखते है जहाँ से रोहन गिरा था. उस ओर देखते ही उन्हे एक और १६ साल का लडका दिखाई देता है. जो सहमा हुआ और घबराया हुआ है. एकदम शांत नीचे गर्दन झुकाकर बैठा हुआ है...जिसका नाम करन है.


 हवालदार सावंत उसके पास जाकर वहा से नीचे की ओर देखते है तो उन्हे वहा से नीचे रोहन कि बॉडी दिखाई देती है. हवालदार सावंत संशय कि नजर से करन कि ओर देखने लगते है.


 उसी दौरान नीचे कि भीड मे से एक व्यक्ती भागते हुए रोहन के घर जाता है और रोहन कि माँ को इस घटना कि खबर देता है. यह बात सुनते ही रोहन कि माँ भागते हुए नीचे जाती है. करन का फ्लॅट रोहन के सामने वाला ही होता है. जिस वजह से करन कि माँ रोहन कि माँ को इस तरह घबराकर भागते हूए देखती है और करन के पिता को इस बारे मे बताती है और वो दोनो भी नीचे कि ओर भागते हुए जाते है.

 नीचे जाते ही रोहन कि माँ रोहन को खून से लत पत नीचे जमीन पर पडे देखते ही बेहोश हो जाती है. पीछे से भागते हूए आ रही करन कि माँ उन्हे सवारती है और अपने घर ले जाती है.


 उसी बीच पुलिस कि पुरी टिम वहा पहूच जाती है. टिम के साथ हवालदार सावंत के सिनियर अफसर इन्स्पेक्टर शिर्के भी घटनास्थल आ जाते है. पुलिस कि टिम के आते ही सारी भीड को रोहन कि बॉडी से दूर किया जाता है. तभी वहा पे हवालदार सावंत भी अपार्टमेंट कि टेरेस से करन को लेकर नीचे आ जाते है और करन को पुलिस कि गाडी मे बिठा देते है. फिर भी करन बिना कुछ कहे गुमसुम घबराते हुए पुलिस कि गाडी मे बैठ जाता है. हवालदार सावंत करन को गाडी मे बिठाकर सीधे इन्स्पेक्टर शिर्के के पास जाते है और उन्हे सम्मान के साथ सेल्यूट करते हुए बोलते है,

 'सर.... मैने ही आपको फोन किया था'


 हवालदार सावंत कि ओर देखकर इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'सावंत... कैसे हुआ ये?'


 तुरंत ही जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर....मै इसी अपार्टमेंट मे रहता हू. जब मै पुलिस स्टेशन जाने के लिये निकल रहा था तब अचानक से ही ये लडका उपर से नीचे गिर गया और उस वजह से इस लडके कि जगह पर ही मौत हो गयी.'


 हवालदार सावंत कि यह बात सुनकर इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 "सावंत... अगर तुम इसी अपार्टमेंट मे रहते हो तो तुम इस लडके को पहले से ही जानते होगे?'


 सवाल का जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'जी सर... मै इस लडके को बडे अच्छे से जानता हू. इस लडके का नाम रोहन परब है. इसके पिताजी सरकारी दफ्तर मे अफसर है. लडका बहोत ही शांत स्वभाव का था और पढाई मे भी बढिया था. पर सर... जहाँ से ये लडका नीचे गिरा है वहा पे मैने कुछ अजीब देखा है.'


 हवालदार सावंत कि इस बात पर गौर फर्माते हुये इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'ऐसा क्या देखा तुमने सावंत?'


 आगे बताते हुए हवालदार सावंत बोलें,

 'सर मै जब अपार्टमेंट के टेरेस के उपर देखने के लिये गया, तब वहा मुझे हमारे इसी अपार्टमेंट मे रहने वाला लडका करन मिला... जो उसी जगह पर शांत और गुमसुम बैठा था जहाँ से ये रोहन नीचे गिरा था. मैने करन को हमारे पुलिस की गाडी मे बिठाया है.


 पुलिस कि गाडी कि ओर करन को देखते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'तुमने बात कि उसके साथ? कुछ बताया उसने?


 जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर मैने उसके साथ बात करने कि कोशिश कि पर वो कुछ भी नहीं बोल रहा है. बहोत ही घबराया हुआ है और सर... जिस हालत मे वो मुझे मिला है जिससे मुझे लगता है कि वों इस घटना के बारे बहोत कुछ जानता है.


 यह सारी बाते करने के बाद इन्स्पेक्टर शिर्के रोहन कि बॉडी को पोस्ट मॉर्टम के लिये ले जाने के लिये कहते है और साथ ही करन को पूछताछ के लिये पुलिस स्टेशन ले जाने के लिये बोलते है. उसी समय करन के पिता करन को पुलिस कि गाडी मे बैठा देखकर भागते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के और हवालदार सावंत के पास आकर बोलते है,

 'इन्स्पेक्टर साहब, ये जो आपके गाडी मे बैठा है वों मेरा बेटा है. आप उसे कहा लेकर जा रहे है?'


 करन के पिता कि बात सुनकर हवालदार सावंत उन्हे थोडा बाजू मे ले जाकर समझाते हुए बोलते है,

 'दादा...आप घबराईए मत.. हम करन को सिर्फ पूछताछ के लिये लेकर जा रहे है, क्यों कि जहाँ से रोहन गिरा था उस जगह पे करन मौजूद था. हो सकता है कि करन कुछ जानता हो और मुझे पता है कि हमारा करन ऐसा नहीं कर सकता इसलिये आप फिकर मत करिये.... जैसे ही पूछताछ पुरी होगी मै उसे खुद घर ले आऊंगा.'


 एक बाप कि फिकर को समझते हुए हवालदार सावंत ने बडे ही प्यार से और सहजता से करन के पिता को समझाकर उन्हे घर भेज दिया और पुलिस कि गाडी करन को लेकर पुलिस स्टेशन कि ओर निकल जाती है.

 पुलिस स्टेशन आने पर करन को कुर्सी पर आराम से बिठाया जाता है. अभी तक करन को इस तरह सहमा हुआ देखकर इन्स्पेक्टर शिर्के उसे पाणी का ग्लास देते है. पर करन उस पाणी के ग्लास की ओर देखता तक नहीं. करन की इस तरह की बेचैनी को और घबराहट को भांपते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के हवालदार सावंत को बाजू मे ले जाकर बोलते है,

 'सावंत… इस लडके की हालत और इसकी घबराहट को देखकर एक बात तो साफ है की इस केस की सारी कडिया इसी करन से जुडी हुई है. एक काम करो, तुम करन के ही अपार्टमेंट मे रहते हो ना.. तुम उसके साथ प्यार से बात करने की कोशिश करो... शायद वो कुछ बता पाये.'


 इन्स्पेक्टर की बात सुनकर हवालदार सावंत बोलते है,

 'जी सर….मै कोशिश करता हू.'


 यह बात बोलकर हवालदार सावंत करन के पास आते है और प्यार से उसके कँधे पर हाथ रखते हुए बोलते है,

 'करन…. मै सावंत काका... पहचाना मुझे बेटा… हम एक ही अपार्टमेंट मे रहते है और मै तुम्हारे उपर वाले फ्लोअर पे रहता हू...पहचानते हो ना बेटा मुझे...


 हवालदार सावंत की यह सारी बाते सुनकर भी करन उनकी ओर देखता भी नहीं और नीचे गर्दन झुकये शांत बैठा रहता है.

 फिर भी एक और बार बात करने की कोशिश करते हुए हवालदार सावंत करन से बोलते है,

 'करन बेटा... मुझे पता है की रोहन के अपार्टमेंट से नीचे गिरने के विषय के बारे मे तुम बहोत कुछ जानते हो... क्यों की तुम हमे उसी जगह से मिले जहाँ से रोहन गिरा था... देखो बेटा,  हम तुमे कुछ नहीं करेंगे.... तुम जो भी जानते हो इस विषय मे प्लिज हमे बता दो '


 थोडा क्षणभर रुकते हुए और थोडा सोचते हुए हवालदार सावंत फिर से करन को बोलते है,

 'करन... अपार्टमेंट की टेरेस पर क्या तुम दोनों के बीच कुछ हुआ था? क्या तुमने खुद रोहन को धक्का दिया था उपर से?'


 हवालदार सावंत की इस बात को सुनकर इतने देर से गुमसुम, बेचैन और शांत बैठा करन फूट फूट कर रोने लगता है.

 उसे इस तरह रोते देख एक महिला हवालदार करन को शांत करने की कोशिश करने लगती है. इन्स्पेक्टर शिर्के ने उस महिला हवालदार को इशारा करते हुए कहते है के करन को दुसरे केबिन मे ले जाकर बिठाया जाये. इशारे को समझते हुए महिला हवालदार करन को ले जाकर उसे दुसरे केबिन मे बिठाती है.


 करन के जाते ही सोचते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के हवालदार सावंत से बोलते है,

 'इतनी देर से वो लडका शांत और गुमसुम बैठा था, पर जैसे ही तुमने उससे रोहन को मारने की बात बोली तो वो फूट फूट कर रोने लगा... तुम उसी अपार्टमेंट मे रहते हो सावंत... तुम्हे क्या लगता है, ये करन उस रोहन को मार सकता है क्या? उन दोनों के बीच का रिश्ता कैसा था?'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की बात का जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर... मुझे नहीं लगता के करन रोहन को मार सकता है, क्यों की मै जानता हू के दोनों के बीच बहोत ही गहरी दोस्ती थी और ये बात सारे अपार्टमेंट को पता थी...वो दोनो एक ही फ्लोअर मे आमने सामने रहते है.... उनके परिवारो के बीच भी बहोत ही अच्छा रिश्ता है.... घुलमिलकर रहते है सारे... ऐसे मे मुझे नहीं लगता सर के करन इस तरह रोहन को मार सकता है.'


 हवालदार सावन की सारी बाते सुनने के बाद इन्स्पेक्टर शिर्के अपने काम के अनुभव को मध्य नजर रखते हुए बोलते है,

 'सावंत, कही बार ऐसा होता है की हमे जो दिखाई देता है वो सच नही होता.. कुछ तो प्रॉब्लेम थी इन दो परिवारो के बीच जिसका बली बेचारा ये रोहन बन गया.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की बात पर अपनी सहमती जताते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'ऐसा भी हो सकता है सर '


 तुरंत ही बोलते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'सावन, किसी लडकी का चक्कर था क्या इन दोनों के बीच? क्यों की ऐसी उम्र मे कही बार गुनाहों की वजह लडकी या एकतरफा प्यार ही होता है.'


 जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर, मेरी जानकारी मे तो मैने इन दोनों मे से  किसी के भी अफेयर की बात नहीं सुनी है... पर फिर भी मै इस बात की ठीक से जानकारी निकाल कर आपको रिपोर्ट कर देता हू.'


 दोनों की इसी बातचीत के दौरान करन की माँ और उसके पिता पुलिस स्टेशन आ जाते है और इन्स्पेक्टर शिर्के के पास आकर हडबडी मे करन की माँ बोलती है,

 'इन्स्पेक्टर साहब, आप मेरे बेटे को यहाँ क्यों लेकर आये है? उसने कुछ नहीं किया है... वों कुछ गलत कर ही नहीं सकता... रोहन तो उसका बहोत ही अचछा दोस्त था.... आप प्लिज हमारे बेटे को छोड दीजिये.'


 करन के माँ की बाते सुनकर इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'देखिये, हमने आपके बेटे को किसी जुर्मं के लिये अरेस्ट नहीं किया है. मौकाये वारदात पर करन मौजुद था, बस इसलिये हम उसे पूछताछ के लिये लेकर आये है और आपके बेटे की अभी की हालत देखकर ऐसे ही लग रहा है की आपका बेटा रोहन के मौत के बारे मे जरूर कुछ जानता है.'


 यह बात सुनकर हवालदार सावंत की और देखते हुए करन की माँ बोलती है,

 'सावंत भाऊ... आप तो समझाईए ना इन्स्पेक्टर साहब को. आप तो जानते है ना हमारे करन को.'


 करन की माँ को समझाते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'वहिनी, आप घबराईये मत..हम ये नहीं कह रहे है के करन ने कुछ किया है. हम बस उसके साथ पूछताछ करेंगे और छोड देंगे.'


 हवालदार सावंत की यह बात सुनकर अपने बेटे की चिंता मे डुबे करन के पिता बोलते है,

 'कहा है हमारा बेटा? क्या हम उसे मिल सकते है?'


 करन के माता पिता के बेसबरी को और बेटे के प्रति के चिंता को समझते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के महिला हवालदार से बोलते है,

 'इन्हें उनके बेटे से मिलवाईए.'


 महिला हवालदार जैसे ही करन की माँ को और पिता को करन के पास लेकर आती है तो करन की माँ करन को ऐसे गुमसुम बैठा देख भागकर जाते हुए अपने बेटे को गले से लगाती है और रोने लगती है. उसके बाद करन को प्यार की नजर से देखते हुए प्यार से बोलती है,

 'बेटे तुम पुलिस को बता क्यों नहीं देते के तुमने कुछ नहीं किया है?'


 करन यह सारी बाते सुनकर भी अपनी माँ की और देखता तक नहीं और उनके किसी भी बात का जवाब नहीं देता. करन को इस तरह गुमसुम देख दोनो घबरा जाते है और एक दुसरे की ओर देखने लगते है. करन के पिता करन के पास आकर बोलते है,

 'बेटा, तुम ऐसे चूप मत रहा करो... हमे डर लग रहा है... जो भी हुआ है बेटा हमे बता दो.'


 अपने पिता के भी इन सारे बातों पर करन बिना कुछ बोलें मौन साधे बैठा रहता है. यह देख करन के माता पिता और चिंतित  होने लगते है. इसी बीच वहा पर हवालदार सावंत आ जाते है और करन के माता पिता से बोलते है,

 'देखिये, अभी आप लोग घर जाईये... मै हू यहा...  करन का ध्यान रखुगा और जैसे ही पूछताछ पुरी होगी मै उसे घर ले आऊंगा.'


 यह बात सुनते ही करन की माँ करन के पिता की ओर देखते हुए घबरकार बोलती है,

 'पर करन कुछ बोल क्यों नहीं रहा?'


 करन के पिता करन की माँ को सवारते हुए  बाहर ले जाते है.

 करन अपनी ही दुनिया मे खोया हुआ था. वों सारे लोगों की बाते तो सून रहा था, पर किसी से कुछ बोल नहीं पा रहा था. आखिर करन ऐसा बरताव क्यो कर रहा था? आखिर करन रोहन के मौत के बारे मे क्या जानता था? क्या करन ने ही रोहन को उपर से धक्का दिया था? अगर रोहन को करन ने ही मारा था तो उसके पीछे क्या वजह थी?


 ऐसे ढेर सारे सवाल पुलिस के मन मे घूम रहे थे और इसिलिये पुलिस करन के पिछली जिंदगी के बारे मे जानने की कोशिश मे जूट जाती है.


 करन पुलिस स्टेशन मे शांत बैठा था. ऐसे मे वों अपने पिछली जिंदगी की स्मृतियो मे खोने लगता है... जहाँ वों ६ साल का था. सुबह का वक्त था. माँ रसोई मे काय कर रही थी. पिता काम पे जाने की तैय्यारी कर रहे थे और करन सुकून से टीव्ही पे कार्टून देख रहा था. ठिक उसी समय दरवाजे की बेल बजी. करन की माँ ने दरवाजा खोला. सामने रोहन की माँ खडी थी और करन की माँ को देख हँसते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'नमस्कार, मेरा नाम सारिका परब है. मै, मेरे पती और मेरा 6 साल का बेटा रोहन.. आप के बाजू के फ्लॅट मे रहने आये है. अभी सामान की शिफ्टिंग ही शुरु है. बस इसलिये थोडा पाणी मांगने आयी थी. क्या 1 बोतल पाणी मिल सकता है.'


 रोहन के माँ के हाथ की पाणी बोतल को उनके हाथ से लेते हुए करन की माँ बोलती है,

 'हां जी.. जरूर मिलेगा... आप अंदर आईये ना... वैसे भी बहोत अच्छा हुआ के आप लोग यहा रहने आये है. बहोत ही खाली खाली लगता था हमे भी, अब से नहीं लगेगा.'


 करन के माँ की बात सुनकर रोहन की माँ भी खुश होकर हंसने लगती है और अपने पती को और रोहन को भी बुलाकर उनसे करन के परिवार की जान पहचान करवा देती है. ये पहला प्रसंग था जब ये दो परिवार आपस मे मिले थे.. साथ ही पहली बार करन और रोहन मिले थे.

           उसके बाद दोनो परिवारो मे एक अच्छा रिश्ता बन जाता है. रोहन के पिता एक सरकारी दफ्तर मे अफसर थे. इसलिये उनके रहने का ढंग बडा ही अमिरों वाले तरिके का था. उनके घर मे हर एक शान और शौकत वाली चीजे थी. करन की माँ भी उनके इस जीवन पद्धती का अनुकरण करने का प्रयास करने लगती है. इसी बीच करन की माँ को पता चला के रोहन एक बडे अग्रेजी स्कुल मे दाखिला ले रहा है.

 जब करन के पिता शाम को काम से घर आते है तो करन की माँ उनके पास जाकर बडे ही उत्सुकता से बोलती है,

 'सुनिये ना... मुझे आपसे करन के स्कुल दाखिले के बारे मे कुछ बात करनी है.'


 करन के पिता जवाब देते हुए बोलते है,

 'इसमे बात क्या करनी है... उसी पब्लिक स्कुल मे ही तो दाखिला कराना है.


 तुरंत ही पलटकर जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 बिलकुल नहीं... मै करन का दाखिला बडे अग्रेजी स्कुल मे कराना चाहती हू. मेरी रोहन की माँ से बात हो चुकी है. वों लोग रोहन को जिस स्कुल मे डाल रहे है, हम भी उसी स्कुल मे दाखिला करायेंगे.'


 करन के माँ की यह बात सुनकर थोडा गुस्साते हुए करन के पिता बोलते है,

 'तुम्हारा दिमाग तो ठीक है.. रोहन के पिता सरकारी अफसर है.... उंची तनख्वाह है उनकी... मेरी उतनी औकात नहीं है के मै अपने बेटे को इतने बडे स्कुल मे सिखा सकू.'


 पलटकर जवाब देते हुए गुस्से मे करन की माँ बोलती है,

 'तो आप क्या चाहते है की हम जिस तरह की जिंदगी जी रहे है वैसी ही जिंदगी हमारा बेटा भी जिये. आप नहीं चाहते के हमारा बेटा बडे स्कुल मे पढे और बडा इन्सान बने.'


 अपनी पत्नी को प्यार से समझाते हुए करन के पिता बोलते है,

 'आशा....कौन सा बाप नहीं चाहता के उसका बेटा बडा इन्सान ना बने.. पर बडा इन्सान बनने के लिये बडे स्कुल मे ही सिखना हो ये तो जरुरी नहीं होता और फिर बात सिर्फ बडे स्कुल मे दाखिला लेने की नहीं है.. बडे स्कुल मे दाखिला लेने के बाद उसे अलग से बडे और महंगे वाले क्लासेस भी शुरु करने पडेंगे... इन सब का खर्चा मै नहीं उठा पाऊंगा, इस बात को तुम भी समझती हो ना'


 पती की यह बात सून गुस्से से खडे होते हुए करन की माँ बोलती है,

 'आपकी ये सारी बाते सुनकर यही लग रहा है की आपसे इस बारे मे बात करके कोई फायदा नहीं है और नाही हमारे करन की जिंदगी सवरने वाली है. हमने जैसी जिंदगी जी ली है बस वैसी ही जिंदगी हमारे करन को भी जीनी पडेगी.'


          यह सारी बाते बोलकर करन की माँ रसोई घर मे चली जाती है और उसे समझाने के लिये करन के पिता उसके पीछे जाते है. इन दोनों की सारी बाते और दोनों के बीच का झगडा करन सून लेता है.'

          इसी बीच पुलिस स्टेशन की हडबडी के आवाज से करन अपने पिचली जिंदगी के स्मृतियो से जाग जाता है.


उसी दौरान हवालदार सावंत इन्स्पेक्टर शिर्के के केबिन मे जाते है और सेल्यूट करते हुए बोलते है,

 'सर… रोहन की पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट आयी है. पर सर रिपोर्ट मे रोहन की बॉडी पर जबरदस्ती के कोई निशान नहीं मिले है जिससे ये साबित हो के गिरने से पहले रोहन ने खुद को बचाने की कोशिश की हो... इसका मतलब यही बन रहा है सर के शायद रोहन ने आत्महत्या कर ली हो.'


 हवालदार सावंत को जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'सावंत... या फिर ऐसे भी हो सकता है की किसी जान पहचान वाले ने रोहन को धक्का दिया हो, जब रोहन का ध्यान ना हो..... जैसे के करन.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की ये बात सून थोडा रुकते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'हो सकता है सर... पर करन ऐसा क्यों करेगा सर.... जहाँ तक मै उन्हे जानता हू, उन दोनो मे बहोत ही बढिया रिश्ता था और अभी तक की जाँच मे भी ऐसी कोई भी चीज सामने नहीं आयी है के जिससे ऐसा लगे के करन ने ही रोहन को धक्का दिया होगा.'


 हवालदार सावंत की बात को सुनकर उसकी बातों पर गौर फर्माते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'अभी तक तो हमे करन के खिलाफ कुछ मिला नहीं है पर करन का इस तरह से गुमसुम और चूप रहना बहोत सी बातों पर सोचने के लिये मजबूर कर रहा ह. (थोडा सा रुक कर सावंत की ओर देखते हुए ) सावंत… मैने तुमे लडकी के अँगल से पूछताछ करने के लिये बोला था उसका क्या हुआ?'


 जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'उसकी पूछताछ जारी है सर... जैसे ही कोई बात सामने आती है तो मै आपको रिपोर्ट कर दूंगा.'


 जवाब मे इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 "करन की हालत अब कैसी है? बोल पा रहा है कुछ?


 तुरंत ही हवालदार सावंत बोल पडे,

 'नहीं सर, अभी भी वों कुछ नहीं बोल रहा है... यहाँ तक की उसने अपने माँ बाप से भी बात नहीं की है अब तक.'


 सावंत की बात का तुरंत ही जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'सावंत, मुझे लगता है की हमे psychiatric की मदत लेनी चाहिये करन से बात करने के लिये... तुम एक काम करो, डॉक्टर शर्मा को फोन करके बुला लो और उन्हे ये केस समझा दो.'


          इन्स्पेक्टर शिर्के की बात सुनकर हवालदार सावंत डॉक्टर शर्मा से बात करके उन्हे ये केस समझा देते है .. दुसरे ही दिन डॉक्टर शर्मा करन से मिलने के लिये पुलिस स्टेशन आ जाते है. इन्स्पेक्टर शिर्के से मिलकर वों करन के पास जाते है. हादसे के बाद से बिना कुछ बोलें गुमसुम बैठा करन अभी भी उसी तरह बैठा था. डॉक्टर शर्मा उसके पास जाकर बैठते है और बडे ही प्यार से बोलते है,

 'हॅलो करन, कैसे हो? तुम... पहचानते हो मुझे?'


 डॉक्टर की ओर बिना देखे नीचे गर्दन झुकये करन वैसे ही गुमसुम बैठा रहता है.


 फिर से डॉक्टर शर्मा करन से बात करते हुए बोलते है,

 'शायद तुम मुझे नहीं जानते पर तुम्हारा दोस्त रोहन मुझे जानता था.... मेरा बेटा भी रोहन के क्लास मे पढता था तो वों मेरे घर आया करता था.'


 यह बात सुनते ही करन बेचैन होकर डॉक्टर शर्मा की ओर देखने लगता है.'


 आगे बात करते हुए डॉक्टर शर्मा बोलते है,

 'बडा ही प्यारा लडका था रोहन.. उसने मुझे तुम्हारे बारे मे भी बताया था के करन मेरे बाजू के फ्लॅट मे रहता है और करन मेरा बहोत ही अच्छा दोस्त है'


 यह सारी बाते सुनकर करन बहोत जादा बेचैन हो जाता है और डॉक्टर शर्मा की ओर देख उनकी बाते सुनने लगता है.'

 करन की इस बेचैनी को भांपते हुए डॉक्टर शर्मा आगे बोलते है,

 'रोहन अक्सर तुम्हारी बाते मुझसे और मेरे बेटे से किया करता था... वों कहता था के तुम दोनो साथ मे खेलते थे, साथ मे घुमते थे.... उसने ये भी बताया था के वों और तुम हमेशा एक दुसरे को सारी बाते शेअर करते थे.... (थोडा रुकते हुए करन की हरकतो की ओर देखते हुए डॉक्टर शर्मा बोले) पता नहीं, इतने प्यारे लडके के साथ ऐसा कैसे और क्यों हुआ? तुमे तो वों सारी बाते बताता था ना तो तुमे इसके बारे कुछ ना कुछ पता तो होगा ना करन?'


 डॉक्टर शर्मा की यह सारी बाते सून करन सर को पकडकर नीचे की ओर देखने लगता है और इसी बीच करन अपने पिचली जिंदगी के स्मृतियो मे फिर से खो जाता है... जहाँ वों ११ साल का है और आज उसके ५ वी कक्षा का रिजल्ट आना है… करन घर मे बैठा है… करन के पिता करन का रिजल्ट लाने गये है और करन की माँ उनके आने का इंतजार करते हुए बैठी है... इतने मे ही करन के पिता करन का रिजल्ट लेकर घर आ जाते है.   उनके आते ही करन की माँ उनके हाथ से करन का रिजल्ट लेकर देखने लगती है.

 रिजल्ट देखते ही करन की माँ करन के पास गुस्से से जाकर उसके हाथ को पकडकर उसे सोफे से उठाती है और एक थप्पड मारते हुए बोलती है,

 'क्या है ये करन... सिर्फ ५५ प्रतिशत मार्कस... क्या कर रहे थे एक साल तक.. तुम्हारा पब्लिक स्कुल मे ये हाल है, मै तुमे बडे स्कुल मे भरती कराने के बारे मे सोच रही हू और तुम ५५ प्रतिशत मार्कस लेकर आ गये.'


 करन डरा सहमा भिगी आँखो से अपनी माँ की ओर देखने लगता है. यह देख करन के पिता उसे पास लेते हुए करन की माँ को बोलते है,

 'आशा... मार क्यों रही हो उसे.  प्यार से भी तो समझा सकती हो ना.'


 अपने पती की ऐसी बाते सूनकर और गुस्से मे आते हुए करन की माँ बोलती है,

 'आप तो चूप ही रहीये.. आप ही के लाड और प्यार ने बिघाड रखा है उसे...और वैसे भी आप मुझे मत सिखाईये की मुझे करन से किस तरह बात करनी चाहिये.. माँ हू मै उसकी, उसके भविष्य की चिंता होती है मुझे, इसलिये उसे समझाती रहती हू. उस रोहन को देखिये जरा, इतने बडे स्कुल मे पढता है फिर भी ९१ प्रतिशत मार्कस लेकर  आया है और हमारा बेटा देखिये.... उसके आधे मार्कस लेकर आया है.'


 अपनी पत्नी की इस तरह की बाते सून करन के पिता भी तुरंत से बोलते है,

 'तुम उनके साथ हमारी बराबरी करना आखिर बंद कब करोगी आशा.'


 अपने माता और पिता की यह सारी बाते करन सहमकर सून रहा था. इसी बीच और जादा गुस्साते हुए करन की माँ बोलती है,

 'आप कहना क्या चाहते है की मुझे मजा आता है करन को डांटने और मारने मे... मै बस यही चाहती हू के हमारा बेटा पढ लिखकर बडा इन्सान बने. हमारी तरह आधी अधुरी जिंदगी ना जिये.'


 शांत होकर अपनी पत्नी को जवाब देते हुए करन के पिता बोलते है,

 'मै समझता हू के तुमे करन के भविष्य को लेकरं  चिंता होती है, पर मै तुमसे इतना ही कहना चाहता हू के उसे समझाने का तुम्हारा तरिका गलत है. अब आगे तुम्हारी मर्जी.'


          यह बात कहकर करन के पिता अंदर चले जाते है. इसी बीच डॉक्टर शर्मा की आवाज सुनकर करन अपनी पिछली जिंदगी के स्मृतियो से बाहर आता है. डॉक्टर शर्मा की बाते सुनने के बाद करन के अंदर पनंपती बेचैनी को भांपते हुए डॉक्टर शर्मा इन्स्पेक्टर शिर्के को थोडा बाजू मे ले जाकर बोलते है,

 'देखिये सर, करन जरूर रोहन के मौत के बारे मे जानता है, पर एक साथ हमे उसके दिमाग पे जोर डाल देना ठीक नहीं होगा. उसके दिमाग मे बहोत सी बाते चल रही है... आज के लिये इतना काफी है… हम कल फिर उसके साथ बात करने की कोशिश करेंगे.'


 डॉक्टर शर्मा की बातों को समझते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'आप ठीक बोल रहे है डॉक्टर.. आप कल सुबह आ आईये. आप कल फिर करन से बात करेंगे तो मुझे यकिन है की कुछ ना कुछ सामने जरूर आ जायेगा.'


         डॉक्टर शर्मा पुलिस स्टेशन से निकल जाते है और थोडी ही देर मे हवालदार सावंत इन्स्पेक्टर शिर्के के केबिन मे आकर सेल्यूट करते हुए बोलते है,

 'सर..  आपने जो मुझे लडकी के अँगल से पूछताछ करने के लिये कहा था, मैने उसकी पूछताछ पुरी कर ली है.'


 आगे सवाल करते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'केस से जुडी कुछ जानकारी मिली जाँच मे?'


 जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर… वैसे तो उनका किसी भी लडकी के साथ किसी भी तरह के अफेयर की बात सामने नहीं आयी है, पर दोनों की एक कॉमन दोस्त थी जिसका नाम प्रिया है... पर सर वों सिर्फ उनकी दोस्त थी... उस लडकी को लेकर किसी भी तरह की अनबन नहीं थी दोनों के बीच.'


 हवालदार सावंत को जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'सावंत... मुझे लगता है की अब हमे हमारी पूछताछ को रोक देना चाहिये.'


 यह बात सुनकर चौकते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर आप ऐसा क्यों बोल रहे है? जाँच रोक देंगे तो हकीकत का पता कैसे लगायेंगे '


 थोडा मुस्कुराकर जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'मै ऐसा इसलिये बोल रहा हू सावंत, क्यों की इस केस की सारी कडिया करन से ही जुडी है और मुझे पुरा यकिन है के करन के मुह खोलने के बाद ये केस पुरी तरह से सुलझ जायेगा.'


 इसी बीच करन के माता पिता इन्स्पेक्टर शिर्के के केबिन मे आ जाते... करन के पिता इन्स्पेक्टर शिर्के को देखते हुए बोलते है,

 'इन्स्पेक्टर साहब, आपकी पूछताछ पुरी हो गयी हो तो हम हमारे बेटे को घर ले जा सकते है क्या?'


 करन के माता पिता की ओर देखते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 "देखिये, मै आपकी हालात को बलिभांती समझ रहा हू पर हमे करन से और ठीक से पूछताछ करनी होगी... इसलिये आप अभी उसे यहाँ से नहीं ले जा पायेंगे. आप फिकर मत करीये, वो हमारे यहाँ पुरी तरह से सुरक्षित है.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की यह बात सूनकर थोडा गुस्साते हुए करन की माँ बोलती है,

 'पर आप लोग हमारे बेटे को हमे ले जाने क्यों नहीं दे रहे है? हमारे बेटे ने कुछ नहीं किया है ये बात आप लोगों को समझ क्यों नहीं आ रही है?'


 करन की माँ के सवालों का जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'देखिये मॅडम, हम लोग ये नहीं कह रहे है की करन ने कुछ किया है... पर हम लोग आपको एक बात यकिन के साथ कह सकते है की करन को रोहन की मौत कैसे हुई इस बारे मे बहोत कुछ पता है और जब तक हम ये सारी बाते करन के मुह से सून नहीं लेते तब तक आप उसे यहाँ से नहीं ले जा सकते.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की यह बात सुनकर करन के माता पिता दंग होकर एक दुसरे की ओर देखने लगते है. करन की माँ करन के पिता की ओर देखते हुए धिमे स्वर मे बोलती है,

 'हमारे करन को रोहन के मौत के बारे मे पता है .. क्या बोल रहे है ये लोग... आप समझाइये ना इनको... हमारे बेटे को छोडने बोलिये ना.. आप ऐसे चूप क्यों बैठे है?.'


 करन के माता पिता को इस तरह मायुस होता देखकर हवालदार सावंत बोलते है,

 'दादा...आप आईये मेरे साथ '


 हवालदार सावंत दोनों को बाहर ले जाकर कुर्सी पर बिठाते है और उनका हाथ अपने हाथो मे लेते हुए बोलते है,

 'दादा... मै हू ना यहाँ करन के साथ... आप फिकर क्यों कर रहे है? ये बस औपचारिक पूछताछ है जो करना जरुरी है… क्यो की करन वहा मौजुद था जहाँ से रोहन उपर से नीचे गिरा था और एक बात मै आपको बताना चाहता हू दादा... के मुझे भी ऐसा लगता है की करन इस बारे मे बहोत कुछ जानता है.. हम बस करन से ये सारी बाते जानने की कोशिश कर रहे है और कुछ नहीं… आप बिलकुल फिकर मत किजिये '


 हवालदार सावंत की बाते सुनकर करन के पिता धिमे स्वर मे बोलते है,

 'क्या हम करन से मिल सकते है?'


 बडे ही प्यार से जवाब देते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'जरूर मिल सकते है.. चलीये मै आपको ले चलता हू.'


 यह बात बोलकर हवालदार सावंत करन के माता पिता को करन के पास ले जाते है... करन की ओर देखते ही करन के माता पिता की आँखो से फिर से एक बार आंसू आने लगते है...आज उनका बेटा पुलिस स्टेशन मे शांत गर्दन झुकये बैठा था... आखिर ऐसा क्या हुआ था जिस वजह से आज करन को यहाँ इस तरह बैठना पड रहा था? आखिर रोहन की मौत के बारे मे करन ऐसा क्या जानता था जिसे जानने की कोशिश मे पुलिस जुटी थी? इस तरह के कही सारे सवालों के बीच करन के माता पिता करन के पास आये... पास मे बैठते ही करन की माँ ने करन को गले लगा लिया... थोडी देर मे खुद को संभालते हुए करन से बोलती है,

 'करन...... ये पुलिस वाले बोल रहे है की तुम रोहन के मौत के बारे मे बहोत कुछ जानते हो.   तुम इन्हें बंता क्यों नहीं देते की तुम कुछ नहीं जानते.'


 अपनी माँ की इन सारी बातों को सुनकर भी चुप्पी साधे बैठा करन अपनी माँ की ओर देखता भी नहीं. अपने बेटे की चुप्पी को देखकर प्यार से करन के सर पर हाथ रखते हुए करन के पिता बोलते है,

 'बेटा, हमे पता है के तुमने कुछ नहीं किया है..रोहन तुम्हारा बहोत ही अच्छा दोस्त था और उसकी इस तरह की मौत का तुमे बहोत गहरा सदमा पहूँचा है... पर बेटा अब इन सारी बातों से बाहर तो आना होगा ना... सामने पुरी जिंदगी पडी है, इसलिये बेटा तुम जो भी जानते हो वों प्लिज पुलिस को बता दो '


 अपने पिता की इस बात पर भी करन इसी तरह मौन साधे बैठा रहता है और यह देखकर करन के माता पिता मायुस होकर एक दुसरे की ओर देखने लगते है. हवालदार सावंत करन के माता पिता को समझाते हुए बाहर ले जाते है.

           दुसरे ही दिन सुबह ११ के बीच डॉक्टर शर्मा पुलिस स्टेशन आ जाते है. आते ही इन्स्पेक्टर शिर्के के केबिन मे जाते है. डॉक्टर शर्मा को देखते ही इन्स्पेक्टर शिर्के बडे ही सम्मान से बोलते हुए बोलते है,

 'डॉक्टर साहब... आईये… प्लिज बैठीये... (बाहर से हवालदार को बुलाते हुए) 2 चाय लेकर आईये प्लिज...


 चाय की बात सुनते ही तुरंत से प्रतिक्रिया देते हुए डॉक्टर शर्मा बोलते है,

 'अरे नहीं नहीं सर.... अभी अभी मै चाय लेकर आया हू... दोबारा मत.'


 काम के तणाव और दबाव के बीच थोडा हँसी मजाक करते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'डबल चाय पिने मे कौन सी बडी बात है डॉक्टर साहब और वैसे भी अभी आपको करन से बहोत सारी मिठी बाते करके बहोत सारी बाते जाननी है.... इसलिये डबल मिठी चाय तो होनी ही चाहिये.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की यह बात सुनकर दोनो ही हंसने लगते है... इतने मे चाय आ जाती है… चाय पिते हुए फिर से एक बार रोहन के केस पर गंभीर होते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के डॉक्टर शर्मा से बोलते है,

 'डॉक्टर साहब... आपको क्या लगता है इस केस के बारे मे..हमारी अब तक की पूछताछ से एक बात तो साबित है की इस केस से करन पुरी तरह से जुडा हुआ है... इस केस की सारी कडिया करन से ही जुडी है... बस अब सिर्फ इतना पता लगाना है की क्या करन ने ही रोहन को धक्का दिया है.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की अनुमान का जवाब देते हुए डॉक्टर शर्मा बोलते है,

 'या फिर ऐसा भी हो सकता है सर के करन ने किसी को रोहन को धक्का देकर नीचे गिराते हुए देखा हो और इसीलिये वों घबराकर डिप्रेशन मे चला गया हो.... सर, साथ ही मे संभावना इस बात की भी है के रोहन ने खुद से ही नीचे गिरकर जान दे दि हो.'


 डॉक्टर शर्मा की बातों का जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'आपके सारे अनुमान सही है डॉक्टर साहब.. पर ये सारी बाते समझने के लिये और सही अनुमान पर पहूँचने के लिये हमे करन से बात करनी होगी.... उसे डिप्रेशन से बाहर निकालना होगा... जो काम आप ही कर सकते है.'


 थोडा मुस्कुराकर जवाब देते हुए डॉक्टर शर्मा बोलते है,

 'जरुर सर... ये तो मेरा काम है.'


 यह सारी बाते बोलकर दोनो चाय खतम करते हुए करन से बात करने के लिये करन के पास आते है. डॉक्टर शर्मा करन के सामने बैठकर मुस्कुराते हुए करन से बोलते है,

 'हॅलो करन बेटा.... कैसे हो?


 करन उनकी आवाज सुनकर उनकी ओर देखता है... करन को उन्होने पिछली बार की गई बाते याद आने लगती है, पर फिर भी बिना जवाब दिये करन उनसे नजर चुराने लगता है.

 करन की आँखो मे अपने प्रति बढ रही कुतूहलता को भांपते हुए डॉक्टर शर्मा आगे बोलते है,

 'बेटा कल हम जादा बात नहीं कर पाये थे... मुझे भी किसी काम की वजह से कल जल्दी जाना पडा था और इसलिये मै आज फिर तुमसे मिलने और बात करने आया हू.'


 रोहन के मौत के बाद से आज तक अपने मुह से एक भी शब्द का उच्चारण ना करने वाला करन बात करने की कोशिश करने लगता है... करन की इस कोशिश को देखकर इन्स्पेक्टर शिर्के चौकते हुए करन की ओर देखने लगते है ... इसी बीच हिचखिचाते हुए करन पहली बार बोलता है,

 "आप.... मुझसे क्या बात करना चाहते हो?"


 करन को पहली बार बोलता देखकर डॉक्टर शर्मा एक बाप की तरह करन का हाथ अपने हाथ मे लेकर प्रेम से बोलते है,

 'करन मै तुमसे तुम्हारे और रोहन के बारे मे बात करना चाहता हू.'


 डॉक्टर शर्मा की यह बात सुनते ही थोडा घबराते हुए करन अपना हाथ उनके हाथो से दूर ले जाकर फिर से नीचे जमीन की ओर देखने लगता है.

 करन के चेहरे के हावभावो को ठीक से नोटीस करते हुए डॉक्टर शर्मा फिर से बोलते है,

 'मुझे रोहन ने तुम्हारे बारे मे बहोत सी बाते बतायी थी... जैसे के तुम क्रिकेट बहोत अच्छा खेल लेते हो... रोहन ने बताया था के तुम्हारे पुरे कॉलनी मे तुमसे बेहतर क्रिकेट कोई नहीं खेल पाता है.. रोहन ने ये भी बताया था के तुम बहोत दूर दूर तक चौके मार लेते हो और इसलिये कही बार गेंद भी गुम हो जाती थी... करन क्या सच मे तुम इतना अच्छा क्रिकेट खेलते हो?'


 डॉक्टर शर्मा की यह बात सुनते ही रोहन के मौत के बाद से पहली बार करन के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कुराहट दिखाई देती है. यह देख डॉक्टर शर्मा और इन्स्पेक्टर शिर्के एक दुसरे की ओर देखने लगते है और इसी बीच डॉक्टर शर्मा की बातों को सुनकर करन अपनी पिछली जिंदगी के स्मृतियो मे खोने लगता है..... जहाँ वों १४ साल का है... घर के पास के मैदान मे दोस्तो के साथ क्रिकेट खेल रहा है... साथ मे रोहन भी खेल रहा है... करन दूर दूर तक चौके लगा रहा है और फिर खेल खतम करके करन और रोहन घर लौट रहे है... इसी बीच करन रोहन कि ओर देखते हुये बोलता है,

'रोहन...... तुमने बताया नहीं आज के मै कैसे खेल रहा था?'


करन को जवाब देते हुये रोहन बोलता है,

'हां... रोज कि तरह ही ठीक खेलं रहा था तू '

यह बात सुनते ही थोडा चौकते हुये करन बोलता है,

'सिर्फ ठीक रोहन....'


तुरंत जवाब देते हुये रोहन बोलता है,

'और नहीं तो क्या? तू रोज ही अच्छा खेलता है... फिर रोज रोज 'तेरी तारीफ क्या करना...'


यह बात सुनकर थोडा आगे जाते हुये पीछे रोहन को देखकर मजाक करते हुये करन बोलता है,

'वो क्या है ना रोहन..... तू मेरे खेलं से जलता है... इसीलिये तू तारीफ नहीं कर रहा है.'

करन कि यह बात सुनते ही रोहन करन कि ओर भागते हुये बोलता है,

'मै तेरे से जलता हूँ करन.... रुक तेरे को बताता हूँ...'


ऐसे ही हँसी मजाक करते हुये दोनो भागते हुये घर जाते है. करन घर आते ही बल्ला दिखाते हुए बडे ही उत्सुकता से अपनी माँ से बोलता है,

 'माँ... तुमे पता है मैने आज कितनी बढिया बल्लेबाजी की... मेरे सारे दोस्त देखते ही रह गये.  सब दोस्त बोल रहे थे की मुझसे अच्छा यहाँ कोई नहीं खेल पाता… यहाँ तक की रोहन ने भी मुझसे ये बोला और तुमे पता है ना माँ की रोहन मेरा कितना अच्छा दोस्त है.. वों मुझसे झूठ कभी नहीं बोलता.'


 करन के मुह से यह बाते सुनकर करन की माँ बोलती है,

 'तेरे यही सारे दोस्त अगर पढाई मे बढिया मार्कस लाने की वजह से 'तेरी तारीफ करते ना करन तो मुझे जादा ख़ुशी होती.'


 माँ की ऐसी बाते सुनकर करन मुरझा जाता है. जैसे उसकी सारी ख़ुशी कही लुप्त हो गयी हो. आगे बोलते हुई करन की माँ बोलती है,

 'वों रोहन भी तेरे साथ ही खेलता है... उतना ही खेलता है जितना तुम खेलते हो, फिर भी पढाई मे तुमसे कही जादा मार्कस लाता है वों... सीखो कुछ उससे. सिर्फ खेलना कुदना ही जिंदगी नहीं होती. पढाई भी करनी होती है... समझे.'


 यह बात बोलकर करन की माँ अंदर चली जाती है. माँ की इस तरह की बाते सुनकर करन मा्यूस होकर वैसे ही घर से बाहर निकलकर अपार्टमेंट की टेरेस पर चला जाता है.

           थोडी ही देर मे रोहन करन को मिलने के लिये करन के घर आता है और करन की माँ से पूछते हुए बोलता है,

 'काकी... करन कहा है?'


 रोहन को जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 'वो तो थोडी देर पहले ही घर आया था और फिर से बाहर चला गया. मुझे लगा के वों तुम्हारे साथ ही होगा, पर वो तुम्हारे साथ भी नहीं है तो गया कहा ये लडका?'


 करन की माँ को तुरंत ही जवाब देते हुए रोहन बोलता है,

 'काकी आप फिकर मत किजिये...मुझे पता है के करन कहा होगा.'


 इतना बोलकर रोहन घर से बाहर जाते हुए अपार्टमेंट के टेरेस पर आ जाता है. उपर आकर देखता है के करन टेरेस के कम्पाउंड वर बैठा है. करन को देखते ही रोहन समझ जाता है के करन किसी वजह से परेशानी मे है. रोहन उसके पास जाकर बोलता है,

 'मै तुमे नीचे ढुंढ रहा था और तुम यहाँ हो... कम से कम मुझे बोलके तो आ जाते.


 रोहन की बातों को अनसूना करते हुए करन दुसरी ओर देखने लगता है. करन की इस हरकत को देखते हुए रोहन करन से बोलता है,

 'देख करन, दोस्त हू तेरा... ठीक से समझ पा रहा हू के तू परेशानी मे है... अब बतायेगा भी.'


 गुस्से से रोहन को देखते हुए करन बोलता है,

 'तू मेरी परेशानी कम कर ही नहीं सकता रोहन... क्यों की मेरे परेशानी की वजह ही तू है'


 यह बात सुनते ही रोहन चौकते हुए करन को बोलता है,

 ''तेरी परेशानी अगर मेरी वजह से है ना तो मै उसे जरूर दूर करुंगा. तू प्लिज बता मुझे.'


 रोहन की यह बाते सुनकर करन रोहन को गले लगाकर रोने लगता है और फिर आँसू पोंछते हुए रोहन को बोलता है,

 'रोहन... तुम लोग यहाँ आने से पहले मेरी माँ मुझसे बहोत प्यार करती थी.. मेरे हर चीज का खयाल रखती थी.. मेरे साथ खेलती थी, मुझे घुमाने लेके जाती थी, मुझे खिलाती थी..उसकी पुरी दुनिया ही मै था और मेरी पुरी दुनिया मेरी माँ ही थी..


 भरे हुए दिल से और नम आँखो से बोलते हुए करन आगे बोलता है,

 'पर जब से तुम यहाँ रहने आये हो ना रोहन, मेरी माँ को मुझ पर प्यार आना ही बंद हो गया है... हर बात पर वो मुझे तुम्हारे साथ तौलती रहती है... हमेशा तुम्हारे मार्कस के साथ मेरे मार्कस की तुलना करती रहती है...ऐसा लगता है जैसे मेरी माँ को बस बहाना चाहिये होता है मुझे डांटने का... मै कुछ भी बोलू, वों हर बात को तुमसे ही जोड देती है रोहन.'


 यह सब बाते बोलकर करन रोहन को गले लगाकर रोने लग जाता है. रोहन करन को संभालने की कोशिश करने लगता है. आगे रोते हुए करन बोलता है,

 'मै तंग आ चुका हू रोहन हर रोज की इन डांट से... तुझे पता है जब स्कुल की परीक्षा आती है तो मुझे उस परीक्षा से जादा डर माँ को सोचकर होने लगती है.. कल अगर मेरे मार्कस कम आ जायेंगे तो  माँ फिर से मेरी तुलना तुमसे करने लग जायेगी और मुझे डांट देगी. इस डर के बीच मै ठीक से पढाई भी नहीं कर पाता यार... कभी कभी ऐसा लगता है की सबको छोड के कही दूर चला जाऊ या फिर खुद को ही खतम कर दु '


 करन की यह सारी बाते सुनकर रोहन दंग रह जाता है और फिर प्रेम से करन की ओर देखते हुए बोलता है,

 'तेरे सारे प्रॉब्लम की जड तो मै ही हू ना करन तो तू क्यों मरेगा... मरना तो उसे चाहिये ना जो प्रॉब्लम की जड है.'


 इतना बोलकर रोहन टेरेस के कम्पाउंड के उपर चढता है और बोलता है,

 'वैसे भी करन.... मेरे जिंदगी से अगर मेरे दोस्त की जिंदगी मे परेशानी होती है तो उस जिंदगी को खतम करने मे मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है  '


 यह बात सुनते ही करन रोहन का हाथ पकडकर रोहन को नीचे खिंचकर चिल्लाते हुए बोलता है,

 'पागल हो क्या तुम रोहन...तुम ही तो हो यार… जो मुझे समझ पाता है और तुम ही जाने की बात कर रहे हो..मर जाऊंगा यार मै भी.'


 करन की यह बाते सुनकर दोनो एक दुसरे को गले लगकर रोने लगते है.

         थोडी ही देर मे दोनो ही अपने घर चले जाते है. रोहन अपने घर आ जाता है. सामने उसके माता पिता बैठे होते है. रोहन दोनों के पास बैठकर अपने पिता की ओर देखते हुए बोलता है,

 'पापा मुझे आपसे कुछ बात करनी है.'


 रोहन की ओर प्यार से देखते हुए रोहन के पिता बोलेते है,

 'क्या बात है रोहन? क्या बात करनी है तुमे?


 रोहन दोनों की ओर देखते हुए बोलता है,

 'पापा मुझे आपसे करन के बारे मे बात करनी है.'


 करन का नाम सुनते ही रोहन की माँ तुरंत से बोलती है,

 'करन के बारे मे…. क्या बात करनी है तुमे रोहन?


 अपनी माँ को जवाब देते हुए बडे ही भावुकता से रोहन बोलता है,

 'माँ... मै अभी करन से मिलकर आ रहा हू... वों बहोत जादा रो रहा था माँ.'


 रोहन की यह बात सुनकर करन के चिंता मे रोहन की माँ बोलती है,

 'क्यों रो रहा था करन? कुछ बताया उसने?


 अपनी माँ को जवाब देते हुए रोहन बोलता है,

 'करन की माँ की वजह से वों परेशान है माँ.. उसने बताया के उसकी माँ उसे मुझे लेकर हमेशा ताने मारती रहती है और पढाई मे कम मार्कस मिलने की वजह से उसे डांटती रहती है. वो ये भी कह रहा था के उसकी माँ ने उसे प्यार करना और उसकी फिकर करना ही बंद कर दिया है... आप दोनो प्लिज कुछ करीये  माँ.'


 रोहन की यह सारी बाते सुनकर रोहन के माता पिता एक दुसरे की ओर देखने लगते है और रोहन के पिता रोहन की माँ को समझाते हुए बोलते है,

 'सारिका... ये तो बहोत गलत बात है. करन की माँ को ऐसा नहीं करना चाहिये.. मुझे लगता है की तुमे करन की माँ से बात करनी चाहिये.'


 रोहन के पिता की बातों को समझते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'हा.... मुझे करन की माँ से बात करनी होगी '


         दुसरे ही दिन रोहन की माँ करन की माँ से मिलने के लिये करन के घर आती है.. करन की माँ को रसोइ घर काम करते देख रोहन की माँ बोलती है,

 'आशा….हुए नहीं काम अभी तक?'


 रोहन की माँ को देखते हुए थोडा चौकते हुए करन की माँ बोलती है,

 'अरे सारिका तुम… आज इस वक्त… आ ना अंदर और वैसे भी हम औरतों के काम कभी खतम होते है क्या?'


 करन की माँ की बात सुनकर सर हिलाते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'हा … बात तो तेरी सही है….वैसे खुशबू बहोत ही बढिया आ रही है. क्या बना रही हो आज?


 थोडा मुस्कुराकर जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 'कुछ खास नहीं रे… व्हेज बिर्याणी बना रही हू. "


 तुरंत से जवाब देते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'रोहन को तेरे हाथ की व्हेज बिर्याणी बहोत पसंद है...1 प्लेट भेज देना रोहन के लिये.'


 काम करते हुए ही जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 'सारिका तुम भी ना… ये भी बोलने वाली बात है क्या… मुझे पता है की रोहन को मेरे हाथ की व्हेज बिर्याणी पसंद है.'


 इस तरह थोडा इधर उधर की बाते करने के बाद रोहन की माँ थोडा हिचखिचाते हुए करन के माँ से बोलती है,

 'आशा… मुझे तुमसे कुछ बात करनी है….करन के बारे मे.'


 रोहन की माँ की यह बात सुनते ही हाथ का काम छोडकर रोहन की माँ की ओर देखते हुए करन की माँ बोलती है,

 'करन के बारे मे… कुछ गलत किया है क्या उसने सारिका?'


 करन की माँ को तुरंत ही जवाब देते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'करन ने कुछ गलत नहीं किया है आशा… हमारा करन कभी कुछ गलत कर सकता है क्या… पर आशा, मुझे ऐसा लगता है की तुम उसके साथ गलत कर रही हो.'


 रोहन के माँ की यह बाते सुनकर चौकते हुए करन की माँ बोलती है,

 'मै करन के साथ गलत कर रही हू.. क्या गलत कर रही हू मै सारिका… तुम ऐसा क्यों बोल रही हो?'


 करन के माँ के पास जाते हुए उनका हाथ अपने हाथ मे लेते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'देख आशा... प्लिज मुझे गलत मत समझना… क्या है ना की कल रोहन करन से मिला था तो तब करन बहोत रो रहा था. वों रोहन को बोल रहा था के तुम उसे हमेशा पढाई मे कम मार्कस आने की वजह से डांटती रहती हो.'


 रोहन की माँ को जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 'तो इसमे गलत क्या है सारिका? मै माँ हू उसकी…मुझे फिकर होती है उसकी. मै चाहती हू के वों पढ लिखकर बडा इन्सान बने और इसके लिये मैने उसे थोडा डांट दिया तो क्या गलत कर दिया मैने.'


 बडे ही प्यार से करन की माँ को समझाते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'इसमे कुछ भी गलत नजी है आशा…मै तुम्हारी चिंता को समझती हू पर तुम उसकी तुलना हमेशा रोहन के साथ करती रहती हो ये गलत है आशा...हर बच्चा एक समान नहीं होता.'


 रोहन की माँ को जवाब देते हुए थोडा भावुक होकर करन की माँ बोलती है,

 'तुम्हारा बेटा पढाई मे होशियार है सारिका… इसलिये शायद तुम मेरी चिंता को समझ नहीं पाओगी. मै जानती हू के हम लोग किस तरह जी रहे है… महिना खतम होने आता है ना सारिका… तो पैसे कम पडने लगते है हमारे घर मे.. पैसे बचा बचा कर महिने के आखिर के दिन गुजारने पडते है हमे और इसीलिये मै बस इतना चाहती हू के हमने जिस तरह की जिदगी बितायी है उस तरह की जिंदगी करन ना बिताये. इस कारण से अगर मै उसे डांटती हू तो क्या मै गलत हो जाती हू.'


 करन के माँ की यह सारी बाते सुनकर थोडा रुकते हुए आगे रोहन की माँ को बोलती है,

 'आशा… प्लिज तुम मुझे गलत मत समझो. मै तुम्हे गलत नहीं कह रही हू. करन के भविष्य के प्रति तुम्हारी चिंता को मै समझती हू…पर करन कल रो रहा था तो मुझे लगा के मुझे तुमसे बात करनी चाहिये.. देख आशा...तुम्हारे इस तरह से दबाव डालने से करन के पढाई मे अच्छे मार्कस तो नहीं आने वाले है ना.'


 रोहन की माँ की बात का जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 'तो और मै क्या कर सकती हू सारिका..करन को बडे क्लासेस मे भी नहीं डाल सकती क्यों की वहा की फीज भरने की हमारी औकात नहीं है .. इसीलिये मै उसे समझाती रहती हू के उसे ही दिल लगाकर पढना होगा तो इसमे मैने क्या गलत कर दिया?'

 करन की माँ की इन बातों को सुनकर रोहन की माँ करन की माँ को आगे कुछ नहीं बोल पाती.


          उसी दिन शाम को करन स्कुल से घर आता है..घर के हॉल मे करन के माता पिता सोफे पे बैठे थे…करन घर के अंदर आता है और अपने स्कुल बॅग को टेबल पर रख देता है… करन को देखते ही करन की माँ करन के पास जाकर बोलती है,

 'करन तुमने रोहन को क्या बताया मेरे बारे मे?"


 अपनी माँ की यह बाते सुनकर थोडा घबराते हुए करन बोलता है,

 'मैने क्या बताया रोहन को माँ? आप ऐसा क्यों पुछ रही हो?'


 करन को गुस्से मे जवाब देते हुए करन की माँ बोलती है,

 'तुमे शर्म नहीं आयी करन… अपने दोस्त के सामने माँ को बदनाम करते हुए.'


 पुरी तरह से घबराते हुए करन माँ से बोलता है,

 'क्या किया है मैने माँ?'


 आगे बोलते हुए करन की माँ बोलती है,

 'तुमने रोहन को बोला के मै तुमे मारती हू.. मै तुमे डांटती हू… तुमे क्या लगता है करन की मुझे ये सब करने मे मजा आता है…मै क्या तुम्हारी दुष्मन हू… माँ हू मै तुम्हारी करन, फिकर लगी रहती है मुझे तुम्हारे भविष्य को लेकर और इसिलिये मै तुमे हमेशा समझाने की कोशिश करती रहती हू…पर तुम क्या कर रहे हो? घर के बाहर अपनी माँ को ही गलत साबित कर रहे हो… बाहर दुनिया को बता रहे हो के तुम्हारी माँ कितनी बुरी है… हा मै हमेशा तुमे रोहन के साथ तोलती रहती हू.  क्यो की मै चाहती हू के तुम उसकी तरह बनो… जैसे हर कोई रोहन की तारीफ करता रहता है, ठिक उसी तरह मै ये चाहती हू के हर कोई तुम्हारी भी तारीफ करे करन… मै ये सब इसलिये भी चाहती हू क्यों की मुझे तुम्हारी चिंता है… समझे तुम.'


 अपनी पत्नी की बाते सूनकर करन को इस तरह डरा देख करन के पिता करन को पास लेकर बोलते है,

 'देखो करन, घर की बाते इस प्रकार बाहर किसी को बताना सही नहीं होता. माना के रोहन तुम्हारा अच्छा दोस्त है पर तुमे घर की बाते रोहन को नहीं बतानी चाहिये थी… लोग क्या सोचेंगे की करन के माता पिता को करन की फिकर नहीं है… क्या तुम चाहते हो के लोग हमारे बारे मे इस तरह सोचे… बेटा मै जानता हू के तुम्हारी माँ गुस्से मे कभी कभी जादा डांट देती है पर बेटा ये भी उतना ही सच है की तुम्हारी माँ को तुम्हारी चिंता है.'


 अपने पिता की प्यारी बाते सुनकर करन बोलता है,

 'पर पापां, मै कोशिश तो करता हू ना.'


 करन की बात सुनते ही फिर से गुस्से मे तुरंत से करन की माँ बोलती है,

 'खेलने कुदने से तुमे समय मिलेगा तब तुम कोशिश करोगे ना करन…स्कुल से आते ही खेलने निकल जाते हो. उसके बाद फुरसत मिलने पर थोडी सी पढाइ और अगर इसे कुछ बोलो तो बाहर जाके लोगों के सामने अपने ही माँ की बुराई करेगा.. एक दिन ये पुरी तरह से मुझे बदनाम करके ही चैन की साँस लेंगा.'


 यह बात बोलकर करन की माँ घर के अंदर चली जाती है और करन अपने पापा की ओर सहमी हुई नजरो से देखता रगता है….इसी बीच करन को डॉक्टर शर्मा की आवाज सुनायी देने लगती है जहाँ डॉक्टर शर्मा करन को बोल रहे है के 'करन कहा खो गये हो? क्या तुम मेरी आवाज को सून रहे हो? और इसी दौरान करन अपनी पिछली जिंदगी के स्मृतियो से एक बार फिर बाहर आ जाता है. अपने सामने डॉक्टर शर्मा और इन्स्पेक्टर शिर्के को देखकर करन डरते हुए नीचे जमीन की ओर देखने लगता है.

          करन की इस बेचैनी को देखकर डॉक्टर शर्मा कुर्सी से उठकर इन्स्पेक्टर शिर्के को थोडा बाजू मे ले जाकर बोलते है,

 'सर देखिये… आज पहली बार करन के मुह से कुछ शब्द निकले है और साथ ही चेहरे पर एक हलकी मुस्कान भी दिखाई दि है… इसलिये मुझे लगता है की वों मेरे साथ धीरे धीरे खुलने लगा है पर अभी उसके दिमाग पर और जोर डालना सही नहीं होगा.. आज वों बहोत देर तक अपने ही खयालो मे खोया था… इसलिये मुझे ऐसा भी लग रहा है के  रोहन की मौत का केस कही ना कही करन के अतिथ से ही जुडा है…हमे इसे धीरे धीरे जानना होगा….'


 डॉक्टर शर्मा की बातों को समझते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'शायद आप सही कह रहे है डॉक्टर… तो मिलते है कल.'


          डॉक्टर शर्मा इन्स्पेक्टर शिर्के से विदा लेकर पुलिस स्टेशन से निकल जाते है. डॉक्टर शर्मा के जाने के बाद कुछ ही समय मे हवालदार सावंत इन्स्पेक्टर शिर्के के केबिन मे आकर बोलते है,

 'सर… कल रात को करन और रोहन के फ्लोअर पे ही रहने वाले देसाई मेरे घर मुझसे मिलने आये थे. करन के बारे मे बात करने के लिये. तो उनसे मुझे एक बात पता चली है जो मुझे लगता है की आपको जान लेना जरुरी है.'


 हवालदार सावंत के बात पर तुरंत ही प्रतिक्रिया देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'पहेलिया मत बुझाओ सावंत...जो भी बात है जल्दी बोलो.'


 अपनी बात को पुरा करते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर मुझे देसाई ने बताया के एक रोज जब वों करन के फ्लॅट के पास से जा रहे थे तो उन्होने करन के घर से झगडे की आवाज सुनी थी और उन्होने सुना था के करन की माँ करन को बहोत जादा डांट रही थी…जिसमे उन्होने ये सुना के करन की माँ करन को रोहन के उपर से डांट रही थी क्यों की करन को स्कुल मे बहोत कम मार्कस मिले थे, जब की रोहन करन के साथ ही रहते हुए बहोत जादा मार्कस लेता था.'


 हवालदार सावंत की बातों की गंभीरता को समझते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'सावंत… हमने कभी इस अँगल से सोचा ही नहीं '


 थोडा सोचते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के आगे बोलते हुए बोलते है,

 'सावंत कही ऐसा तो नहीं के करन घर के इस डांट से परेशान हो गया था और इसिलिये उसने रोहन को नीचे धक्का दे दिया हो.. क्यों की सावंत दबाव मे आकर बडे बडे लोगों को हमने क्राईम करते देखा है और फिर ये तो एक नासमज छोटा बच्चा है .. इससे इस तरह की गलती हो जाना कोई बडी बात नहीं होगी.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की बात पर आगे बोलते हुए सावंत बोलते है,

 'ऐसा हो सकता है सर और अपने ही दोस्त की जान लेने के दबाव की वजह से वो अभी तक गुमसुम और शांत बैठा हो.'


 हवालदार सावंत की बात को आगे बढाते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के आगे बोलते है,

 'या फिर ऐसा भी हो सकता है सावंत के रोहन के प्रतिभा से ईर्षा के चलते करन की माँ ने ही रोहन को धक्का दे दिया हो और ये करन ने देख लिया हो, जिस वजह से वों कुछ बोल नहीं पा रहा हो… ऐसे कही केसेस होते हुए हमने देखे है सावंत जहाँ माँ बाप इस तरह के क्राईम्स करते है.. और फिर एक और बात भी है सावंत जिसे मैने नोटीस किया है '


 उत्सुकता से पुछते हुए हवालदार सावंत ने पूछा,

 'कौन सी बात सर?'


 अपनी बात को बताते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'यही बात सावंत के करन की माँ जब भी आती है तो वों पुरे यकीन के साथ हमेशा कहती रहती है के करन ने रोहन को नहीं मारा… शायद उसी ने रोहन को मारा हो जिस वजह से वों इतने यकीन से हमे बोल पाती हो के करन ने रोहन को नहीं मारा.'


 थोडा सोचते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'हा सर.. ये भी मुमकिन हो सकता है.'


 आगे बोलते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'कल डॉक्टर साहब आ रहे है करन से बात करने के लिये और मुझे पुरा यकीन है के कल बहोत से बातों का खुलासा हो जायेगा, पर तब तक तुम अपना काम और पूछताछ जारी रखो… मै इस केस को अब जल्द से जल्द बंद कर देना चाहता हू.'


         यह बाते करके सावंत अपने काम पर चले जाते है. उसी समय करन के घर करन के माता पिता सोच के सागर मे डुबे बैठे थे .. इसी बीच करन की माँ करन के पिता से बोलती है,,

 'क्या आपको ऐसा लगता है के हमारा करन रोहन के साथ कुछ गलत कर सकता है?'


 बडे ही धीमे स्वर मे करन के पिता बोलते है,

 'ये मै नहीं जानता आशा.. पर इतना जरूर जानता हू के अगर ऐसा हुआ है तो इसके लिये कही ना कही हम भी जिम्मेदार है.'


 अपने पती के मुह से इस तरह की बात सुनते ही उनके ओर देखते हुए करन की माँ रोने लगती है.


 आगे बोलते हुए करन के पिता बोलते है,

 'आशा… अब इस तरह से रोकर हमे कुछ नहीं मिलने वाला है… अब आगे जो भी होगा  उसका हमे सामना करना है. भगवान से अब इतनी ही प्रार्थना है की आज हम जिस बात की चिंता की सागर मे डूब रहे है वों सत्य ना हो… और आज हम हमारे करन के भविष्य के लेकर चिंतीत हो रहे है पर जरा उनके बारे मे सोचो आशा, जिन्होने अपना बेटा ही खो दिया है.. उनके भविष्य का आधार ही चला गया है….  जरा सोचो उन पर क्या बित रही होगी.'


 इस बात को सुनकर करन की माँ बोलती है,

 'मुझमे हिम्मत ही नहीं है सारिका के सामने जाने की…कॉलनी मे लोग तरह तरह की बाते  कर रहे है… कुछ लोगों को यही लग रहा है के हमारे करन ने ही रोहन को उपर से नीचे गिराया है… ऐसे मे किस मुह से हम जा पायेंगे उनका दर्द बांटने.'


 करन की माँ की ओर देखकर करन के पिता बोलते है,

 'पर हमे जाना तो होगा ही.'


          दुसरे दिन डॉक्टर शर्मा पुलिस स्टेशन आ जाते है और इन्स्पेक्टर शिर्के से मिलते है. इन्स्पेक्टर शिर्के उनका स्वागत करते हुए डॉक्टर शर्मा को कुर्सी पे बिठाते है. बैठते ही डॉक्टर शर्मा इन्स्पेक्टर शिर्के से बोलते है,

 'तो चले करन से बात करने'


 डॉक्टर शर्मा को जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलेते है,

 'हा चलते है पर उसके पहले मुझे आप से कुछ बात करनी है करन के बारे मे.'


 'कुतूहलता से पूछते हुए डॉक्टर शर्मा बोलते है,

 'कौन सी बात सर?'


 अपनी बात को बताते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के डॉक्टर शर्मा को करन के घर मे रोहन और करन के पढाई को लेकर चल रहे झगडे के बारे मे बताते है. इस बात को सुनने पर डॉक्टर शर्मा इन्स्पेक्टर शिर्के से बोलते है,

 'अच्छा हुआ के ये बात आपने मुझे करन से बात करने से पहले बता दि.. आज हम इसी अँगल को लेकर करन से बात करेंगे.'


 यह बाते करके दोनो करन के पास जाते है. करने के सामने बैठकर डॉक्टर शर्मा करन से बोलते है,

 'हॅलो करन बेटा..आज फिर एक बार वक्त निकालकर मै तुमसे मिलने आया हू, ठिक उसी तरह जैसे तुम और रोहन हर रोज वक्त निकालकर मिला करते थे.'


 डॉक्टर शर्मा कि यह बात सुनते ही करन उनकी ओर देखने लगता है. करन को देखते हुए डॉक्टर शर्मा आगे बोलते है,

 'तुम रोहन से बहोत प्यार करते थे ना करन.. रोहन था भी वैसा लडका के हर कोई उसे पसंद करे.'


 यह बात सुनकर करन बेचैन होने लगता है. अपनी बात को पुरा करते हुए डॉक्टर शर्मा आगे बोलते है,

 'रोहन हर चीज मे अच्छा था, बाते करने मे….दिखने मे… और पढाई मे तो बहोत जादा होशियार था.'


 डॉक्टर शर्मा कि यह बात सुनते ही करन फिर से अपने सर को पकडकर नीचे जमीन कि ओर देखने लगता है. इसी बीच उसे अपने पिछली जिंदगी कि कुछ बाते याद आने लगती है और करन अपने पिचले जिंदगी कि स्मृतियो मे फिर से एक बार खो जाता है….जहाँ वों 16 साल का है… उस दिन उसका 10 वी कक्षा का रिजल्ट आने वाला है… उसकी माँ उसके रिजल्ट का इंतजार कर रही है और उसी समय करन और उसके पिता रिजल्ट लेकर घर आ जाते है… दोनों को देखते ही करन कि माँ करन के पिता को पूछती है,

 'क्या हुआ करन के रिजल्ट का?'


 जवाब मे करन के पिता बोलते है,

 'हा लेकर आया हू रिजल्ट….पास हुआ है करन'


 तुरंत से आगे बोलते हुए करन कि माँ बोलती है,

 'वों तो मुझे पता ही है के करन पास हो गया है पर उसे मार्कस कितने मिले है वों तो बताईये.'


 करन कि माँ कि उत्सुकता को देखकर करन के पिता करन का रिजल्ट उसके हाथ मे दे देते है. बिना वक्त गवाये करन की माँ रिजल्ट देखती है और गुस्से मे करन कि ओर देखने लगती है… करन डर के मारे अपनी माँ कि ओर देख भी नहीं पाता और गर्दन झुकाकर नीचे जमीन कि ओर देखने लगता है. करन कि माँ बेहद ही गुस्से मे करन को देखते हुए बोलती है,

 'करन क्या है ये? सिर्फ ५१ प्रतिशत'


 अपने सर को पकडकर नीचे सोफे पर बैठते हुए करन की माँ बोलती है,

 'हे राम…. क्या करू मै इस लडके का?'


 फिर से गुस्से मे करन के पास आकर थप्पड मारते हुए करन कि माँ बोलती है,

 'इतना समझाया तुमे पर कोई भी बात तुम्हारे दिमाग मे गयी ही नहीं ना आज तक… इतने कम मार्कस मे क्या होगा तुम्हारा आगे जिंदगी मे इस बारे मे कभी कुछ सोचा है तुमने...अभी इतने कम मार्कस है तो १२ वी मे और नीचे आ जाओगे तुम… इससे बेहतर है के तुम पढना ही छोड दो करन और कल से कही पत्थर उठाने चले जाना तुम… कम से कम घर मे कुछ पैसे तो आयेंगे.'


 करन के माँ कि ऐसी बाते सुनकर करन के पिता बोलते है,

 'कैसी बाते कर रही हो तुम आशा? अब उसे कुछ बोलने से कुछ बदलने वाला तो है नहीं… इसलिये अब तुम बस करो.'


 करन के पिता को गुस्से मे जवाब देते हुए करन कि माँ बोलती है,

 'कैसे चूप बैठू मै? दुनिया कितनी आगे निकल चुकी है… नौकरी मिलना मुश्किल हो रहा है लोगों को...उपर से हमारा बेटा ५१ प्रतिशत मार्कस लेकर आया है और आप मुझे चूप बैठने के लिये बोल रहे है. इसे उस रोहन से तुलना करने पर गुस्सा आता है और उनके सामने रोकर बोलता फिरता है के मेरे माँ को मेरी फिकर ही नहीं है..पर क्या तुमे पता है के रोहन को ९२ प्रतिशत मार्कस मिले है… तो क्यों ना करू मै तुम्हारी तुलना उसके साथ, वो भी तो तुम्हारे साथ ही रहता है ना दिन भर.. सोचा था के हमारा बेटा पढ लिखकर बडा इन्सान बन जायेगा और हमे बुढापे मे सम्मान वाली जिंदगी देगा, पर हमारे ही भाग फुटे हुए है जो हमे बुढापे मे भी ऐसी ही जिंदगी बितानी पडेगी.'


 फिर एक बार गुस्से मे करन कि ओर देखते हुए करन कि माँ करन के मासूम दिल को पुरी तरह से आहत करते हुए बोलती है,

 "आज शर्म आ रही है मुझे तुझे अपना बेटा कहते हुए"


 इस बात को सुनते ही करन रोने लगता है और रोते हुए अपार्टमेंट कि टेरेस पर चला जाता है. करन के पिता उसे रोकने कि कोशिश करते है पर वों नहीं रुकता..खुद को थोडा शांत करते हुए करन के पिता कि ओर देखकर करन कि माँ बोलती है,

 "आपको शायद मेरी बाते कडवी लग रही होगी पर कभी कभी ऐसी बाते करना जरुरी हो जाता है और आप फिकर मत किजीये… आ जायेगा वों थोडी देर मे.'

 यह बात सुनकर करन के पिता रुक जाते है.


         थोडी ही देर मे रोहन अपार्टमेंट के टेरेस पे आ जाता है. आते ही करन को टेरेस के कम्पाउंड पे बैठा देखकर उसके बाजू मे जाकर बैठते हुए बोलता है,

 'तेरे पापा ने बताया के तुं टेरेस पे है. इस समय तो तु कभी टेरेस पे नहीं आता तो अभी कैसे?'


 करन अपने ही खयालो मे खोया रहता है. उसे सिर्फ माँ कि बाते याद आ रही थी. करन के इस परेशानी को रोहन समझ लेता है. रोहन समझ जाता है कि करन कि परेशानी रिजल्ट को लेकर है और इस वजह से उसके घर उसे डांट पडी होगी. इसिलिये करन के मूड को बदलने कि कोशिश मे रोहन इधर उधर कि बाते करते हुए बोलता है,

 'करन इस बार हम एक ही कॉलेज मे दाखिला लेंगे. स्कुल मे साथ नहीं पढ पाये पर कॉलेज मे हम एक साथ ही पढेंगे… बहोत मजे करेंगे. क्या बोलता है?'


 रोहन के किसी भी बात पर करन कुछ भी बोल नहीं पाता. वों सिर्फ खुद के ही खयालो मे खोया था, उसे सिर्फ माँ कि बाते याद आ रही थी. इसी बीच रोहन फिर से करन कि ओर देखते हुए बोलता है,

 'करन… मै तेरे से बात कर रहा हू यार… तु सून रहा है के नहीं?'


 इस बात को सुनते ही करन रोहन कि ओर देखने लगता है. रोहन कि ओर देखते ही करन को 2 साल पहले रोहन ने बोली हुई बाते याद आने लगती है, जहाँ रोहन ने करन को बोला था के तुम्हारे प्रॉब्लम कि जड मै ही हू और अगर किसी को मरना चाहिये तो वों मुझे ही मरना चाहिये… वही दुसरी ओर करन को माँ कि बाते याद आने लगती है जहाँ उसे उसकी माँ ने मारा हुआ थप्पड और माँ ने कही हुई बात के "आज मुझे तुमे अपना बेटा कहते हुए शर्म आ रही है" याद आने लगती है. इसी बीच करन का दिमाग काम करना बंद हो जाता है… वों अलग ही नजर से रोहन कि ओर देखने लगता है.. कुछ पल के लिये करन भूलने लगता है के रोहन उसका सबसे अच्छा दोस्त है और करन कि सबसे जादा फिकर रोहन को ही है… इसके विपरीत जाके करन उन क्षणो मे रोहन को अपना दुश्मन मानने लगता है….2 साल पहले रोहन ने कही हुई बातों को सच मानते हुए करन रोहन को ही अपने परेशानी ओंकी जड मानने लगता है….और इसी बीच अपने जीवन के परेशानी ओंके दबाव के बोझ तले दबते हुए बिना कुछ सोचते हुए करन रोहन को ही अपने परेशानी ओंकी जड मानते हुये रोहन को टेरेस से नीचे धक्का दे देता है और रोहन नीचे गिर जाता है……………



 और इसी के साथ करन अपने पिछली जिंदगी के स्मृतियो से बाहर निकलता है और जोर जोर से रोहन को पुकारने लगता है, मानो जैसे अभी उसके सामने रोहन टेरेस से नीचे गिर रहा हो… इन्स्पेक्टर शिर्के और डॉक्टर सावंत करन को संभालने कि कोशिश करने लगते है… अपने सामने इन्स्पेक्टर शिर्के और डॉक्टर सावंत को देख करन बेहोश हो जाता है. इन्स्पेक्टर शिर्के  हवालदार को उसे अस्पताल ले जाने के लिये कहते है और इन्स्पेक्टर शिर्के और डॉक्टर शर्मा अपने केबिन मे आ जाते है.. केबिन मे आते ही इन्स्पेक्टर शिर्के कि ओर देखकर डॉक्टर शर्मा बोलते है,

 'इस केस मे अब सिर्फ दो बाते रह चुकी है, एक तो करन ने ही रोहन को धक्का दे दिया है या फिर रोहन को गिरते हुए करन ने देखा है और मेरा अब तक का अनुभव ये बता रहा है कि अब करन सारी बाते बतायेगा '


          उसके दुसरे दिन इन्स्पेक्टर शिर्के की केबिन मे आते हुए हवालदार सावंत बोलते है,

 'सर….एक गुड न्यूज है… करन अब पुरी तरह ठीक है और वों खुद अब हमसे बात करना चाहता है.'


 हवालदार सावंत की यह बात सुनकर खुश होते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'इसका मतलब डॉक्टर शर्मा का अनुमान सही निकला… चलो फिर सावंत चलते है.. इस केस पर पर्दा डालने का समय अब आ चुका है.'


 इतना बोलकर दोनो करन के पास जाने के लिये निकलते है. अस्पताल मे करन के पास आते ही इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'कैसे हो करन?'


 इन्स्पेक्टर शिर्के को पहली बार जवाब देते हुए करन बोलता है,

 'ठीक हू सर…


 थोडा हिचखिचते हुए और भरी हुई आँखो से करन फिर बोलता है,

 'सर.. मैने ही रोहन को टेरेस से धक्का दिया था… मैने ही अपने सबसे नजदिकी दोस्त की जान ली है '


 यह बोलकर करन ने अपने पिछली जिंदगी से जुडी सारी बाते इन्स्पेक्टर शिर्के को बता दि…करन की यह सारी बाते सुनकर इन्स्पेक्टर शिर्के और हवालदार सावंत दंग होकर एक दुसरे की ओर देखने लगते है.


           उसके बाद करन को लेकर इन्स्पेक्टर शिर्के पुलिस स्टेशन आ जाते है और आते ही फोन करके करन के माता पिता को पुलिस स्टेशन बुला लेते है. पुलिस स्टेशन से फोन आते ही करन के माता पिता तुरंत ही घर से निकलकर पुलिस स्टेशन आ जाते है. करन के माता पिता को देखते ही इन्स्पेक्टर शिर्के दोनों को कुर्सी पर बिठाते है. कुर्सी पर बैठते ही करन की माँ बोलती है,

 'करन को ले जाने के लिये ही आपने हमे फोन किया था ना सर'


 करन की माँ को बडे ही गंभीरता से जवाब देते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'देखिये…करन ने ये कबुल कर लिया है के उसी ने रोहन को टेरेस से  धक्का दिया था.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की बात सुनते ही करन के माता पिता पुरी तरह से चौक जाते है. आगे बोलते हुए इन्स्पेक्टर शिर्के बोलते है,

 'करन ने जो कुछ किया है उसके लिये जिम्मेदार आप ही लोग है. उसके दिल को समझने की आप लोगों ने कभी कोशिश ही नहीं की. करन ने हमे अपनी पुरी कहानी सुनायी है और उसकी कहानी सुनने के बाद मुझे आश्चर्य इस बात का हो रहा है की उसके दिमाग मे चल रही परेशानी ओंके तुफान को आप दोनो समझ कैसे नहीं पाये. आप तो उसके माता पिता है….बडे अफसोस के साथ आज मुझे ये कहना पड रहा है के गलती आप लोगों ने की पर उसकी सजा बहोत सारे मासूम लोगों को मिल रही है. आप ही के गलती के वजह से एक होनहार लडके ने अपनी जान गवाई…. एक माता पिता ने अपना बच्चा खो दिया हमेशा के लिये और एक मासूम लडके के माथे पर खून का दाग लग गया.'


 इन्स्पेक्टर शिर्के की यह सारी बाते सुनकर करन के माता पिता रोने लगते है और रोते हुए केबिन से बाहर जाते है. बाहर आते ही हवालदार सावंत दोनों को करन से मिलने के लिये करन के पास ले जाते है. करन को सामने देखते ही करन की माँ उसे बिलगकर रोने लगती है… अपनी माँ को रोता देखकर रोहन के मौत के बाद पहली बार अपनी माँ से बात करते हुए करन बोलता है,

 'आँसू पोंछ लो माँ… क्यों की मै एकदम ठिक हू. मुझे यहाँ पे हमारे घर से भी जादा सुकून मिल रहा है… पता है माँ क्यों? क्यों की यहाँ मुझे रोकने वाला और डांटने वाला कोई भी नहीं है… सिर्फ और सिर्फ शांती है यहाँ… इसी की तो तलाश कर रहा था मै इतने दिनो से… अब जाके मिली है मुझे.'


 अपने छोटे से लाल के मुह से इतनी बडी बडी बाते सुनकर करन की माँ दंग होकर उसे देखने लगती है. इसी बीच आगे बोलते हुए भिगी आँखो से करन माँ से बोलता है,

 'मै नहीं था होशियार पढाई मे माँ… था मै कमजोर पढाई मे... नहीं समझ आती थी पढाई मुझे… इसमे मेरी क्या गलती थी माँ… बहोत सारे बच्चे कमजोर होते है पढाई मे… हर कोई रोहन की तरह होशियार नहीं होता है ना माँ… तुमने मुझे ऐसे ही क्यों नहीं अपना लिया… मुझे आज भी याद आता है जब तुम मेरा बहोत खयाल रखती थी.. बहोत सारा प्यार करती थी, पर जब से रोहन आया हमारे यहाँ रहने तब से तुम मुझे भूल ही गयी माँ..... सिर्फ ताने मारती रही रोहन को लेकर… सबसे अच्छा दोस्त था मेरा रोहन और मैने उसे ही मार दिया माँ….

 अपने आँसू पोंछते हुए आगे करन बोलता है,

 'मै पढाई मे रोहन से कमजोर था पर मै खेल मे उससे बहोत जादा बेहतर था माँ… मुझे हमेशा लगता था के मै एक बहोत अच्छा क्रिकेटर बन सकता हू.. मुझे स्कुल मे हमारे स्पोर्ट्स टीचर भी कहा करते थे की करन तुम बहोत अच्छा क्रिकेट खेलते हो और तुमे किसी क्रिकेट अकॅडमि मे दाखिला ले लेना चाहिये. मै ये बात आपसे कहना भी चाहता था, पर डर की वजह से कभी कह ही नहीं पाया… क्यों की माँ, मेरे दिल मे आपके लिए प्यार से जादा डर था… स्कुल से घर आते वक्त भी डर लगता था… परीक्षा नजदिक आने पर परीक्षा से जादा आपका ही डर लगा रहता था… कम मार्कस मिले तो माँ क्या करेगी? डांटेगी या मारेगी? इसी सवालों के बोझ के नीचे मै ठीक से पढाई भी नहीं कर पाया कभी माँ… काश तुम मुझे समझ पाती माँ…काश'


         करन की इतनी बडी बातों के बीच करन की माँ समझ ही नहीं पाती के उससे कितनी बडी गलती हो चुकी है… दिल मे बहोत सारे सवालों को लेकर करन के माता पिता पुलिस स्टेशन से घर चले जाते है और वों रोहन के माता पिता से मिलने उनके घर आते है. रोहन के माता पिता को हॉल मे बैठा देखकर करन के पिता हाथ जोडकर बोलते है,

 'हम आपकी माफी मांगने के भी लायक नहीं है, पर फिर भी हो सके तो हमे माफ कर दीजिये. आज हमारी गलतियों के कारण आपने अपने एकलौते बेटे को हमेशा के लिये खो दिया है. हम  आपका दुःख कम तो नहीं कर सकते पर अगर हो सके तो हमे माफ कर दिजिये, क्यों की अब इतने बडे अपराध बोझ के साथ पता नहीं हम और कितने दिन जी पायेंगे.'


 करन के पिता के पास जाकर रोहन के पिता बोलते है,

 'ऐसा मत बोलिये… हा ये सच है की हमारा दुःख बडा है पर आपका भी दुःख कम नहीं है.'


 रोहन के पिता की उदारता को देखकर करन के पिता नीचे गर्दन झुकये रोने लगते है. करन की माँ रोहन के माँ के पास जाकर उनके पैर पकडते हुए बोलती है,

 'सारिका, तुमने एक बार करन के बारे मे मुझसे बात करने की कोशिश की थी, उस वक्त तुम्हारे बातों की गंभीरता को समझकर मैने करन से प्यार से बात कर ली होती तो आज ये सब नही होता… प्लिज मुझे माफ कर दो सारिका. मुझसे बहोत बडी गलती हो गयी.'

 रोहन की माँ बिना कुछ बोलें करन की माँ को गले लगाकर रोने लगती है.


          उसके बाद करन के नाबालिक होने की वजह से उसे बालसुधार गृह मे भेज दिया जाता है.. उसके कुछ दिन बाद रोहन के माता पिता बालसुधार गृह मे करन से मिलने के लिये आ जाते है… करन दोनों को देख नीचे गर्दन झुककर रोने लगता है.. करन के पास आते ही रोहन के पिता करन से बोलते है,

 'करन बेटा… हम आज ये शहर छोडकर हमेशा के लिये अपने गाव जा रहे है और इसलिये जाने से पहले तुमसे मिलने आये है. हम जानते है बेटा के तुमने ये सब जानबूझकर नहीं किया है.. तुमसे ये अनजाने मे हुआ है और हम ये भी जानते है की तुम रोहन से कितना प्यार करते थे… इसिलिये आज मै तुमे एक बात बताने आया हू बेटा.. जो कुछ भी हुआ है उसके पचतावे के बोझ के तले दब मत जाना कभी…इसी तरह के बोझ के तले दबकर तुमने एक गलती कर दि है और हम नहीं चाहते के तुम दोबारा वों गलती करो'


 भरी हुई आँखो से करन के चेहरे पर बडे ही प्रेम से हाथ फेरते हुए रोहन की माँ बोलती है,

 'करन बेटा…अब रोहन की अधुरी जिंदगी को तुमे आगे जीना होगा… यहाँ से निकलकर अपने नये जिंदगी की शुरुवात करना तुम'


 इतना बोलकर रोहन के माता पिता वहा से हमेशा के लिये चले जाते है.




 कहानी का तात्पर्य


         मेरे प्रिय वाचको, मेरी इस "बचपन - एक गुनाह की दस्तक" किताब को पढने के बाद आप सबको इस 'किताब को लिखने के पीछे का तात्पर्य समझ आ चुका होगा. फिर भी मै अपने तरीके से इस किताब का तात्पर्य संक्षिप्त मे आप सब को बताना चाहता हू.

          मैने किताब की शुरुवात मे ही बताया था के बचपन मे ही हर बच्चे के भविष्य की निव रखी जाती है. इसलिये हर माता पिता का अपने बच्चों के बचपन मे जागरूक रहना बेहद जरुरी होता है. हमारे मे से या हमारे आसपास के कही सारे माता पिता ऐसे होते है जो अपने बच्चों को अपने इच्छा-आकांक्षा ओंके साथ बडा बनाने की कोशिश मे जुटे रहते है और इसलिये वो अपने बच्चों को अपने इच्छापूर्ती के स्वार्थ के दबाव तले दबाना शुरु कर देते है. इस बीच वों अपने ही बच्चों के इच्छा ओंका का खयाल रखना भूल जाते है और यही से बच्चों के खराब भविष्य की शुरुवात होनी शुरु हो जाती है.


         यह बहोत ही गलत बात है. जिस तरह हाथ की हर उंगली एक समान नहीं होती, ठिक उसी प्रकार हर बच्चे की प्रतिभा एक समान नहीं होती. अपने इच्छा ओंके के अनुसार अपने बच्चों को बडा इन्सान बनाने की कोशिश करने के बजाय अपने बच्चों की प्रतिभा को समझकर उस प्रतिभा के अनुसार बच्चों को बडा बनाने का प्रयास करना ही हर माता पिता का प्रथम कर्तव्य होता है. पर अक्सर लोग इस बात को भूल जाते है..


         मेरे इस किताब के अनुसार जब रोहन की माँ करन के माँ से करन के बारे मे बात करने की कोशिश करती है, उसी समय अगर करन की माँ ने रोहन की माँ की बातों को गंभीरता से लेते हुए करन से प्यार से बात कर ली होती तो शायद करन के हाथो इतना बडा गुनाह नहीं होता. इस गुनाह की दस्तक रोहन की माँ के द्वारा करन के माँ को मिली थी पर करन की माँ उस दस्तक को समझने मे असमर्थ रही. करन की माँ इस दस्तक को समझ पाती तो एक दोस्त अपने सच्चे दोस्त को ना खोता… एक माता पिता अपने एकलौते बेटे को ना खोते … और एक मासूम बच्चा गुनाहगर ना बन पाता. ठीक इसी प्रकार हमारी रोज की जिंदगी मे भी हमे हमारे बच्चों के जिंदगी से जुडे बडे बडे गुनाहों की दस्तक मिलती रहती है. बस हमे उन्हे समझने की और पहचान ने की जरुरत होती है. मै यह नहीं कह रहा हू के अपने बच्चों को हर तरह की आजादी देना चाहिये… कुछ जगहों पर बच्चों को डांटना भी जरुरी हो जाता है. मै इस किताब के माध्यम से यही बताना चाहता हू के अपने बच्चों के प्रतिभा और उनके क्षमता के अनुसार उन्हे आगे बढाना चाहिये. उन पर इतना दबाव ना बनाये की आपका ही बच्चा आपसे नफरत करने लगे और अगर ऐसा होता है तो मै समझता हू के यह किसी भी माता पिता की सबसे बडी हार है. मेरे इस किताब से अगर किसी के भावना ओंकॊ ठेंस पहूँची हो तो कृपया माफ करे. आशा करता हू के आप सबको यह किताब पसंद आ गयी होगी….. धन्यवाद…



 चेतावनी


 मेरे प्रिय वाचको… मैने यह किताब अपने खुद के अनुभवों से प्रेरित होकर लिखी है. इस किताब मे लिखे गये सारे विचार मेरे खुद के है. मैने यह किताब कही से भी और किसी भी अन्य व्यक्ती के रचना को चुराकर नहीं लिखी है.


         इसलिये मेरे इस किताब को बिना मेरी अनुमती के किसी अन्य जगह पर इस्तेमाल करने की कोशिश ना करे. अगर ऐसा होता है तो उसे चोरी मान लिया जायेगा और उस व्यक्ती पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है. केवल किताब के विचारों को आत्मसात करे और अगर कोई इस किताब को किसी अन्य जगह पे इस्तेमाल करना चाहता हो तो हमे संपर्क करे.  कृपया इस बात का ध्यान दे.


लेखक = मनोज मोहन वाडकर

ई-मेल - wadkarmanoj790@gmail.com




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